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ज़माना पत्रिका वाक्य

उच्चारण: [ jaanaa petrikaa ]
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • उन्होंने आरंभिक लेखन ज़माना पत्रिका में ही किया।
  • प्रकाशित होने वाली ज़माना पत्रिका के सम्पादक मुंशी
  • पहली कहानी बड़े घर की बेटी ज़माना पत्रिका के दिसंबर १९१० के अंक में प्रकाशित हुई।
  • प्रेमचंद नाम से उनकी पहली कहानी बड़े घर की बेटी ज़माना पत्रिका के दिसंबर १९१० के अंक में प्रकाशित हुई।
  • ' प्रेमचंद' नाम से उनकी पहली कहानी बड़े घर की बेटी ज़माना पत्रिका के दिसंबर १९१० के अंक में प्रकाशित हुई।
  • प्रेमचंद नाम से उनकी पहली कहानी बड़े घर की बेटी ज़माना पत्रिका के दिसंबर १९१० के अंक में प्रकाशित हुई।
  • उर्दू में प्रकाशित होने वाली ज़माना पत्रिका के सम्पादक मुंशी दयानारायण निगम ने उन्हें प्रेमचंद नाम से लिखने की सलाह दी।
  • उर्दू में प्रकाशित होने वाली ज़माना पत्रिका के सम्पादक मुंशी दयानारायण निगम ने उन्हें प्रेमचंद नाम से लिखने की सलाह दी।
  • उर्दू में प्रकाशित होने वाली ज़माना पत्रिका के सम्पादक मुंशी दयानारायण निगम ने उन्हें प्रेमचंद नाम से लिखने की सलाह दी।
  • उर्दू में प्रकाशित होने वाली ज़माना पत्रिका के सम्पादक मुंशी दयानारायण निगम ने उन्हें प्रेमचंद नाम से लिखने की सलाह दी।
  • प्रेमचंद नाम से उनकी पहली कहानी बड़े घर की बेटी ज़माना पत्रिका के दिसंबर १ ९ १ ० के अंक में प्रकाशित हुई।
  • उर्दू में प्रकाशित होने वाली ज़माना पत्रिका के सम्पादक और उनके अजीज दोस्त मुंशी दयानारायण निगम ने उन्हें प्रेमचंद नाम से लिखने की सलाह दी।
  • उर्दू में प्रकाशित होने वाली ज़माना पत्रिका के सम्पादक मुंशी दयानारायण निगम ने उन्हें प्रेमचंद नाम से लिखने की सलाह दी 1913 से प्रेमचंद नें हिन्दी में कहानी लिखना शुरू किया।
  • उर्दू में प्रकाशित होने वाली ज़माना पत्रिका के सम्पादक मुंशी दयानारायण निगम ने उन्हें प्रेमचंद नाम से लिखने की सलाह दी 1913 से प्रेमचंद नें हिन्दी में कहानी लिखना शुरू किया।
  • वहीं पर ‘जमाना ' पत्रिका के सम्पादक मुंशी दयानारायण निगम से उसकी मित्रता हुई और पहली कहानी “बड़े घर की बेटी ” ज़माना पत्रिका के दिसंबर 1910 के अंक में प्रकाशित हुई जो धारावाहिक रूप मे छपी।
  • वहीं पर ‘ जमाना ' पत्रिका के सम्पादक मुंशी दयानारायण निगम से उसकी मित्रता हुई और पहली कहानी “ बड़े घर की बेटी ” ज़माना पत्रिका के दिसंबर 1910 के अंक में प्रकाशित हुई जो धारावाहिक रूप मे छपी।
  • अमृत राय ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए लिखा था कि यह चिट्ठी अप्रैल 1929 के आस-पास की होनी चाहि ए. प्रो. शैलेश जैदी ने चिट्ठी में संदर्भित ज़माना पत्रिका के ' आतश विशेषांक ' के आधार पर चिट्ठी की तिथि अगस्त 1929 निश्चित की है जो तर्क-संगत है.

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